डॉ. देशराज सिरसवाल
भारतीय दर्शन में श्रीमदभगवदगीता को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. इस दर्शन की व्याख्या विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने जीवन उद्धेश्यों के अनुसार की है, जिसे कभी ज्ञानयोग, कभी कर्मयोग और कभी भक्तियोग के द्वारा प्रतिपादित किया जाता रहा है. श्रीमदभगवदगीता ही एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है, जो हमें श्रीकृष्ण की वैचारिक परिपक्वता और विराट चरित्र से परिचित करवाती है तथा योगेश्वर श्रीकृष्ण के रूप में हमारे समक्ष स्थापित करती है. जीवन के विभिन्न संघर्षो को देखते हुए, वर्तमान समय में मानव-उत्कर्ष शिक्षा का मुख्य बिंदु होना चाहिए. आज के मनुष्य को भौतिक विकास के साथ-साथ, मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आत्मिक स्तर पर भी सामान्तर विकास की जरूरत है. श्रीमदभगवदगीता के सभी 18 अध्यायों में एक उद्देश्य समाहित है और यह हमें मानव उत्कर्ष से सम्बन्धित सिद्धांतों का पूर्णरूपेण परिचय देती है. इस शोध-पत्र का मुख्य उद्देश्य इन्हीं सिद्धांतों को चिन्हित करना है.
Note: Presented in a Seminar.