HARYANA SANSKRIT ACADEMY, PANCHKULA
&
Departments of Home Science, Physical Education, Botany, Zoology, Sanskrit, English, Hindi, Punjabi, Mass Com, Music (I & V),
SANATAN DHARMA COLLEGE, AMABALA CANTT.
One Day Interdisciplinary National Workshop on
“Rethinking Model of Applied Indian Psychology (with ref to Sanskrit Shaastras & Modern Psychology)”
“व्यवहारपरक भारतीय मनोविज्ञान के प्रारूप का पुनर्विचार (संस्कृत शास्त्र एवम् आधुनिक मनोविज्ञान के सन्दर्भ) ”
Date – 15TH February, 2020, Saturday, Time 10.00. A.M., Place –Seminar Hall
Dear Sir/ Madam _______________________,
You are cordially invited to share your Indigenous traditional knowledge, understanding, information, ideas, perceptions, views & prejudices too about the above said topic as per the schedule.
Idea of the workshop –
इस सम्वाद गोष्ठी के आयोजन का मुख्य कारण है कि भारतीय मनोविज्ञान का एक औपचारिक, तार्किक व्यावहारिक प्रारूप उपस्थापित करना ताकि पाश्चात्य मनोविज्ञान और भारतीय मनोविज्ञान में मानवीय हितों को दृष्टि में रखते हुए एक सम्वाद का मार्ग खुल सके और मानवीय चेतना के उन आयामों को टटोला जा सके जिसकी आवश्यकता आज सम्पूर्ण मानवता को है और इसमें मूलभूत प्रश्न यह है कि भारतीय मनोविज्ञान के नाम पर साहित्य में, शास्त्र में, परम्परा में, संस्कृति में, जीवन में, व्यवहार में जो कुछ भी सामग्री उपलब्ध है, क्या उसके आधार पर एक निश्चित प्रारूप प्रस्तुत किया जा सकता है और यदि किया जा सकता है तो वह क्या है या क्या हो सकता है और साथ ही यह भी स्पष्ट कर लेना चहिए कि क्या मनोविज्ञान साईकालोजी का सही अनुवाद है क्योंकि पश्चिम में “साईकी” (“Psyche”) शब्द का अपना एक इतिहास है जो एक सांस्कृतिक-वैज्ञानिक-दार्शनिक मूल्य के रूप में प्रयोग होता है जबकि भारत में मन “अन्तःकरण” का एक भाग है और इस अन्तःकरण में मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार सम्मिलित हैं अतः अन्तःकरण शब्द तो सम्भवतः साईकोलोजी का समीपवर्ती अनुवाद हो सकता है परन्तु फ़िर भी भारतीय मनोविज्ञान को परिभाषित करने में कई व्यावहारिक कठिनाइयां दृष्टिगत होती हैं जिनकी चर्चा इस गोष्ठी में अपेक्षित है ।साथ ही साथ यह भी ध्यातव्य है कि मनोविज्ञान को इस प्रकार परिभाषित किया जाए कि वह अध्यात्म के क्षेत्र का अतिक्रमण न करे और वह दैनन्दिन समस्याओं का विश्लेषण करे भी और करना सिखाए भी। वेद, उपनिषद्, साहित्य और दर्शन में अनेक गुणात्मक और विश्लेषण पूर्ण तथ्य मन के विषय में कहे गए हैं जिनकी चर्चा इस पक्ष से अपेक्षित है कि वह सब तथ्य मिल कर भारतीय मनोविज्ञान का क्या और कैसा स्वरूप प्रस्तुत करने में सक्षम है।
कतिपय विचार बिन्दु-
भारतीय मनोविज्ञान से हम क्या समझते हैं?
क्या मनोविज्ञान “Psychology” विषय का किसी भी प्रकार से सही अनुवाद हो सकता है?
क्या मन बुद्धि चित्त अहंकार वृत्ति आत्मा सत् चित्त् आनन्द जीव कोश कर्म आदि शब्दों का अंग्रेजी में परिनिष्ठित (realistic) अनुवाद सम्भव है?
क्या उपरोक्त शब्दों की व्याख्याएं अतिव्याप्ति (over generalization) या सांकर्य (overlapping) दोष पीड़ित नहीं है?
भारतीय मनोविज्ञान के विषय में जो कुछ भी सूचना सामग्री उपलब्ध है क्या वह पर्याप्त एवम् व्यवस्थित है ?
क्या उपलब्ध विषय सामग्री का उपयोग वैज्ञानिक पद्धति से करना सम्भव है?
क्या भारतीय मनोविज्ञान को एक विषय के रूप में कम से कम बी०ए०/बी० एस० सी० में पढाना सम्भव है ?और यदि है, तो अभी तक इस सन्दर्भ में हमने क्या प्रयत्न किए और यदि प्रयत्न नहीं किया तो संस्कृत की रक्षा के नाम पर हमने क्या किया? विशेष रूप से विश्वविद्यालयों के स्तर पर?
Have there been any terms, systems, thinking processes in Indian tradition regarding psychology?
If there had been anything which deals with the psychological issues in Indian tradition then a serious investigation is needed so as to find out not only new dimensions in Psychology but also to find a better alternative psychological system?
Primary investigations has led us to believe that Indian tradition deals with nature of consciousness, mind, nervous system, behavior of individuals or society, in a different manner. There are different schools of Indian tradition which not only conceptualize an advance frame-work for psychology but also practise them in a very indigenous manner which makes psychology to think in more humanistic terms like jiva, bhuta, praani etc.
How can different schools of Indian psychology like- Vedic, Mimaanasaa, Saamkhya-yoga, Vedanata, Buddhist, Jain, Tantra, ayurveda etc. be used to add more meaning to the realms of psychology?
Can there be any creative dialogue between the Indian systems of psychological thinking and the western understanding of psychology?
Can India contribute its experiences of psychic understanding to the world at large or humanity in its own terms in different fields of psychology?
Discussion will be focused on the following issues -
१. सिद्धान्त पक्ष Theory > Man and Nature मनुष्य एवम् प्रकृति (स्वभाव), Nervous system नाड़ी / स्नायुमण्डल, Mind अन्तःकरण, Emotions and sentiment भाव , Process of knowledge ज्ञान प्रक्रिया, Action कर्म, Language/ Speech वाक् / भाषा
२. व्यवहार पक्ष Applied Aspect > [Corrective methods उपाय प्रक्रियाएँ- योग , प्राणायाम, ध्यान, मुद्राएं, न्यास, चिकित्सकीय ज्योतिष, कथा, संगीत, मन्त्र तथा अन्य कलाएं आदि]
उपरोक्त विषय के सन्दर्भ में आपके प्रश्नों का, उत्तरों का, सुझावों और वैचारिक आयामों का विनम्रतापूर्ण स्वागत है। कृपया अपनी उपस्थिति से हमें अनुगृहीत करें।
With deep regards
Ashutosh Angiras Dr. Richa Sangwan Dr. Yashna Bawa Prof. Reetika Pahwa Dr. Someshwar Dutt Dr. Rajinder Singh
Convener Org. Secretary Org. Secretary Org. Secretary Director, HAS, PKL Principal
7988955184 8295591927 9729387709
Email- sanskrit2010@gmail.com
Advisory Committee
Dr. Sashi Rana, Head, Dept of Physical Education, Dr. Vijay Sharma, Head, Dept of Hindi, , Dr. Nirvair Singh, Head, Dept. of Punjabi, Dr. Paramjeet Kaur, Head, Dept of Music (I), Dr. Madhu Sharma, Head, Dept of Music (V), Prof. Neetu Bala, Dept of English, Dr. Divya Jain, Head, Dept of Botany, Dr. Zeenat Madan, Head , Dept of Zoology, Dr. Sumit Chibbar, Dept of Botany, Dr. Sonia Batra, Dept of Zoology, Dr. Rajesh Phor, Dept of Phy. Edu., Dr. Nitin Sehgal, Dept Phy Edu., Dr. Saryu Sharma, Dept of Hindi, Dr. Leena Goyal, Dept of Hindi, Dr. Anju Sharma, Dept of Hindi, Dr. Sandeep Phulia, Dept of Hindi